Sunday, February 27, 2011

हिन्दू चिंतन और आतंकवाद : डॉ. सतीश चन्द्र मित्तल

साभार :- पान्च्जन्य २० फरवरी, 2011

महान दार्शनिक श्री राधाकृष्ण के शब्दों में, "हिन्दू धर्म किसी पद्धति, पुस्तक या पैगम्बर से नहीं बना हेँ बल्कि यह निरंतर अनुभव एवं आधार पर की गयी सत्य की खोज हेँ" | (द हिन्दू व्यू ऑफ़ लाइफ) विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने माना कि, "हिंदुत्व कोई धर्म नहीं, बल्कि धर्मों का संयोग, विश्वासों का सहयोगी तथा दर्शन की संघ रचना हेँ" |  फ्रांसीसी दार्शनिक रोमा रोलां ने हिंदुत्व को विविध सम्प्रदायों का एक सुन्दर गुलदस्ता माना हेँ | धार्मिक स्वतंत्रता का उदात्त विचार हिन्दू धर्म ने दिया हेँ जो 'जियो और जीने दो' तथा सर्वधर्म समभाव के उदात्त विचारों को न केवल हिन्दुओं के लिए अपितु विश्व सभ्यता के लिए एक जीवन व्यवस्था तथा जीने का ढंग प्रदान करता हेँ |
   हिन्दू संस्कृति को विश्व संस्कृति कहा जा सकता हेँ | हिन्दू जीवन रचना में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, उच्च नैतिक जीवन मूल्य, आत्म-नियंत्रण, आत्म-संयम तथा सक्षम संस्कारों के द्वारा समस्त मानव जीवन की योजना प्रस्तुत की गयी हेँ | जहाँ इस्लाम केवल कुरान और हदीस को ही महत्व देता हेँ, और उनका विश्व-बंधुत्व केवल मुस्लिम जगत तक ही सीमित हेँ, पोप का ईसाई समाज केवल कैथोलिक ईसाईयों के हितों की बात करता हेँ, वहीँ हिन्दू दर्शन में 'सर्वे भवन्तु सुखिन:', 'वसुधैव कुटुम्बकम' तथा 'क्र्न्वंतों विश्वमार्यम' की कामना की गयी हेँ | हिन्दू चिंतन मूलत: आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का बेजोड़ समन्वय हेँ | हिन्दू दर्शन एक जीवन प्रणाली हेँ, जिसमें अनेक उच्च नैतिक गुणों का समावेश हेँ | प्रसिद्ध मोरक्को यात्री इब्न्बतुता को हिन्दू की सहिष्णुता पर बड़ा आश्चर्य हुआ | विश्व प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैक्स वेबर मानता हेँ कि हिन्दू में अथाह सहिष्णुता हेँ | हिंदुत्व गत १२०० वर्षों से भारतीय इतिहास में राजनीतिक संघर्ष तथा सांस्कृतिक जागरण एवं चेतना का स्वर रहा हेँ | महाकवि चंद वरदाई, महाकवि भूषण, गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविन्द सिंह से लेकर १९ वीं शताब्दी में राजाराम मोहन रॉय, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द,  स्वामी दयानंद  तथा २० वीं शताब्दी में लोकमान्य बाल  गंगाधर तिलक, लाला हरदयाल, डॉ. हेडगेवार आदि ने इसी आधार पर देश में नव चेतना जगाई | 
स्वतंत्रता के पश्चात् ब्रिटिश राज की 'फूट डालो और राज करो' की नीति के कारण कुछ स्वार्थी राजनेताओं ने मुस्लिम वोटों के लालच में 'हिन्दू आतंकवाद' शब्दावली का अविष्कार किया हेँ |
व्यवहारिक रूप  से आतंकवाद  का राजनीतिक असफलताओं अथवा स्वार्थों के वशीभूत होकर निर्दोष नागरिकों की हत्या करना माना जाता हें | विश्व इतिहास में यह कुकृत्य नया नहीं हें | यूरोप तथा इस्लामी देशों में रक्तरंजित अत्याचारों से सैंकड़ों पृष्ठ भरे पड़े  हेँ | आज भी विश्व इस्लामी आतंकवाद, जिहाद और दहशतगर्दी से त्राहि माम कर रहा हेँ | अपनी असफलताओं  से क्षुब्ध होकर अथवा अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कुछ वर्तमान सत्ता-लोलुप राजनेताओं ने हिन्दू आतंकवाद शब्द उछाला  हेँ | लगता हेँ उन्हें हिन्दू चिंतन तथा जीवन प्रणाली  तथा भारतीय इतिहास का ज्ञान नहीं हेँ | 
कुछ लोगों को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को आतंकवादी कहने में शर्म नहीं आती | ऐसे ही लोगों को आज हिन्दू आतंकवाद दिखाई देता हेँ | इनके विपरीत विश्व के अनेक चिन्तक, विचारक विश्व की अनेक समस्याओं, दु:खों, आतंकवाद एवं जिहाद का निराकरण हिन्दू जीवन मूल्यों में ही ढूंढते हेँ |
अलबर्ट आइन्स्टीन ने कहा था कि यदि सचमुच मन की शांति चाहते हो तो आपको पूरब की ओर देखना होगा, विशेष तौर पर भारत की ओर |
अत: यह तो निश्चित हेँ कि हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता | जो हिन्दू आतंकवाद का नारा लगाते हेँ, उनकी क्षुद्र सोच से भारत की समस्याओं का हल नहीं होगा, बल्कि हिन्दू चिंतन से विश्व से आतंकवाद अवश्य समाप्त होगा तथा हिन्दू जीवन विश्व को जीने का मार्ग दिखलाएगी | 

No comments:

Post a Comment